
चुनाव आयोग (ECI) ने स्पष्ट रूप से सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि आधार कार्ड भारतीय नागरिकता का प्रमाण नहीं है, आयोग ने कहा है कि आधार संख्या का उपयोग केवल व्यक्तियों की पहचान स्थापित करने के लिए किया जाता है, न कि उनकी नागरिक स्थिति को प्रमाणित करने के लिए।
मुख्य बिंदु
कानूनी आधार
- चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में ‘आधार (लक्षित वित्तीय और अन्य सहायिकियों, लाभों और सेवाओं का परिदान) अधिनियम, 2016’ की धारा 9 का हवाला दिया है, जो स्पष्ट रूप से बताती है कि आधार संख्या स्वयं में नागरिकता या अधिवास (निवास) का प्रमाण नहीं होगी।
उद्देश्य
- आयोग ने तर्क दिया कि मतदाता सूची से प्रविष्टियों को प्रमाणित करने और डुप्लीकेट नामों को हटाने के उद्देश्य से आधार डेटा एकत्र किया जा रहा है, लेकिन यह प्रक्रिया पूरी तरह से स्वैच्छिक है और इसका लक्ष्य केवल पहचान सत्यापन है।
- चुनाव आयोग ने पूर्व में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेशों का भी उल्लेख किया, जिसमें आधार के उपयोग को पहचान के उद्देश्यों तक सीमित रखा गया था।
UIDAI का रुख
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI), जो आधार जारी करता है, ने भी समय-समय पर इस बात पर जोर दिया है कि आधार संख्या किसी व्यक्ति की नागरिकता या जन्म तिथि का प्रमाण नहीं है, यूआईडीएआई की आधिकारिक वेबसाइट और दस्तावेजों में यह बात प्रमुखता से बताई गई है कि आधार एक पहचान तंत्र है जो भारत के निवासियों को एक विशिष्ट संख्या प्रदान करता है, भले ही उनकी राष्ट्रीयता कुछ भी हो।
सुप्रीम कोर्ट पहले ही कर चुका है स्पष्ट टिप्पणी
चुनाव आयोग ने याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कहा था कि आधार नागरिकता या डोमिसाइल का प्रमाण नहीं है, अदालत ने 7 अक्टूबर को उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए यह देखते हुए कहा था कि इस मुद्दे पर अदालत की स्थिति पहले से स्पष्ट है।
चुनाव आयोग और संबंधित सरकारी निकायों का रुख एक समान है, आधार एक मजबूत पहचान पत्र है, लेकिन इसे भारतीय नागरिकता के प्रमाण के रूप में कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है।





